जातिगत जनगणना को केंद्र सरकार की मंजूरी: सामाजिक न्याय की दिशा में बड़ा कदम

नई दिल्ली — लंबे समय से चली आ रही मांगों के बाद आखिरकार केंद्र सरकार ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए जातिगत जनगणना (Caste Census) को औपचारिक मंजूरी दे दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 30 अप्रैल को हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में यह फैसला लिया गया। इस फैसले से जहां देशभर में सामाजिक न्याय के समर्थकों में खुशी की लहर है, वहीं राजनीतिक गलियारों में भी हलचल तेज हो गई है।

इस निर्णय के जरिए भारत की जनसंख्या को न केवल संख्या के आधार पर बल्कि सामाजिक संरचना — खासकर जातियों — के आधार पर समझा जा सकेगा। यह आंकड़े आने वाले समय में सरकार की नीतियों और योजनाओं को अधिक सटीक, उचित, और सही बनाने में मदद करेंगे।

जातिगत जनगणना

जातिगत जनगणना क्या है?

जातिगत जनगणना वह प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत देश की जनसंख्या का वर्गीकरण जातियों के आधार पर किया जाता है। वर्तमान में, भारत की नियमित जनगणना में केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की जानकारी ही ली जाती है, लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और सामान्य वर्ग की जातिगत स्थिति दर्ज नहीं होती।

अब पहली बार, OBC और अन्य सभी जातियों की जनसंख्या और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति का दस्तावेजीकरण किया जाएगा। इससे सरकार को यह जानने में मदद मिलेगी कि किस वर्ग की स्थिति कैसी है, उन्हें किन क्षेत्रों में सहायता की आवश्यकता है, और किस प्रकार की नीतियों की जरूरत है।

यह जनगणना कैसे की जाएगी?

सरकार ने बताया है कि इस बार की जातिगत जनगणना पूरी तरह डिजिटल होगी। एक विशेष पोर्टल और मोबाइल ऐप के माध्यम से डेटा एकत्रित किया जाएगा। जनगणना कर्मचारी घर-घर जाकर डिजिटल उपकरणों की मदद से आंकड़े एकत्र करेंगे। लोगों को अपनी जाति, उपजाति, शिक्षा, आय, रोजगार और आवास की स्थिति जैसी कई जानकारियाँ देनी होंगी।

मुख्य बिंदु इस प्रकार होंगे:

  • परिवार का कुल आकार

  • प्रत्येक सदस्य की जाति और उपजाति

  • शैक्षणिक योग्यता

  • पेशा और रोजगार की स्थिति

  • वार्षिक आय

  • मकान की स्थिति (पक्का/कच्चा)

  • स्वास्थ्य और स्वच्छता सुविधाएं

इस बार डेटा को कागज पर नहीं, बल्कि सीधे डिजिटल फॉर्म में इकट्ठा किया जाएगा, जिससे पारदर्शिता और सटीकता दोनों बढ़ेगी।

यह जनगणना कब होगी?

कोरोना महामारी के कारण 2021 में होने वाली जनगणना स्थगित हो गई थी। अब सरकार ने संकेत दिया है कि जनवरी 2026 तक जातिगत जनगणना पूरी कर ली जाएगी, और उसके आंकड़े उसी वर्ष के अंत तक सार्वजनिक किए जाएंगे।

सरकार का मानना है कि इतनी बड़ी प्रक्रिया को सावधानीपूर्वक, तकनीकी सहायता के साथ और राज्यों के सहयोग से पूरा करना होगा। इसके लिए सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश भेजे जा चुके हैं।

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं क्या रही हैं?

जातिगत जनगणना पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी तेज हैं।

  • भाजपा की ओर से इसे ‘न्यायपूर्ण नीतियों की दिशा में कदम’ बताया गया है। उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि “प्रधानमंत्री मोदी ने सामाजिक न्याय को एक नई दिशा दी है।”

  • वहीं कांग्रेस ने इसका श्रेय राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और उनकी ‘जितनी आबादी, उतना हक’ की मांग को दिया है।

  • राजद, सपा, जदयू, और डीएमके जैसे क्षेत्रीय दलों ने भी इस कदम का स्वागत किया है और इसे “जनता की जीत” बताया है।

हालांकि कुछ विशेषज्ञों ने चेताया है कि अगर आंकड़ों का राजनीतिक लाभ के लिए दुरुपयोग किया गया, तो सामाजिक तनाव भी बढ़ सकते हैं।

इस जनगणना का महत्व क्या है?

भारत एक विविधता से भरा देश है, जहां जाति व्यवस्था अभी भी सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक निर्णयों को प्रभावित करती है। ऐसे में जातिगत जनगणना के जरिए देश की हकीकत को आंकड़ों में लाया जा सकता है।

इससे मिल सकने वाले लाभ:

  • आरक्षण नीति की समीक्षा और विस्तार

  • सामाजिक कल्याण योजनाओं की बेहतर रूपरेखा

  • पिछड़े वर्गों की वास्तविक स्थिति का आकलन

  • बजट आवंटन में प्राथमिकता निर्धारण

जातिगत जनगणना का रास्ता अब खुल गया है, लेकिन इसे लागू करना आसान नहीं होगा। राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ-साथ प्रशासनिक तैयारी भी जरूरी होगी। लोगों को इसके महत्व को समझाना, डेटा को सुरक्षित और निष्पक्ष तरीके से इकट्ठा करना, और फिर उस पर पारदर्शी रिपोर्ट जारी करना — यह एक लंबी और संवेदनशील प्रक्रिया है।

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