ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा पारित Waqf amendment bill 2025 के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन छेड़ने की घोषणा की है। बोर्ड का मानना है कि यह विधेयक न केवल शरीयत और मुस्लिम धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है, बल्कि यह भारतीय संविधान की धर्मनिरपेक्ष भावना के भी विपरीत है। AIMPLB ने इसे “काला कानून” करार देते हुए इसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने का ऐलान किया है।

AIMPLB की प्रतिक्रिया
महासचिव का बयान
AIMPLB के महासचिव मौलाना मोहम्मद फज़लुर्रहीम मुजद्दिदी ने कहा कि यह विधेयक मुस्लिम समुदाय की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान पर आघात है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह विरोध केवल सांकेतिक नहीं होगा, बल्कि कानूनी और सामाजिक दोनों स्तरों पर लड़ा जाएगा।
आंदोलन का उद्देश्य
AIMPLB के अनुसार, इस विधेयक का मकसद वक्फ संपत्तियों को कमजोर कर उन्हें सरकारी नियंत्रण में लाना है, जो कि संविधान प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है।
आंदोलन की रूपरेखा
चरणबद्ध विरोध
AIMPLB ने इस आंदोलन को चरणबद्ध तरीके से आयोजित करने की योजना बनाई है:
- प्रथम चरण (एक सप्ताह): ‘वक्फ बचाओ, संविधान बचाओ’ अभियान के तहत देशभर में जनजागरूकता कार्यक्रम, रैलियाँ और काली पट्टियाँ बाँधकर प्रदर्शन।
- द्वितीय चरण: जिला और राज्य स्तर पर प्रेस कॉन्फ्रेंस, नागरिक मंचों के साथ बैठकें और जन संवाद।
- तृतीय चरण: प्रतीकात्मक गिरफ्तारियाँ, कोर्ट में याचिकाएँ और संसद भवन के बाहर प्रदर्शन की संभावनाएँ।
प्रमुख शहरों में कार्यक्रम
दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, कोलकाता, लखनऊ, पटना, बेंगलुरु, मलप्पुरम और विजयवाड़ा जैसे शहरों में इस अभियान के तहत बड़े पैमाने पर आयोजन होंगे।
विधेयक के प्रमुख बिंदु और विवाद
विधेयक का सार
वक्फ संशोधन विधेयक 2025 के तहत सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि वह वक्फ बोर्डों की संरचना में बदलाव कर सकती है, जिनमें अब गैर-मुस्लिम सदस्यों को भी शामिल किया जा सकता है। साथ ही, केंद्र सरकार को यह शक्ति दी गई है कि वह वक्फ संपत्तियों पर प्रत्यक्ष नियंत्रण रख सके।
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AIMPLB की आपत्तियाँ
- वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति शरीयत के विरुद्ध है।
- इससे वक्फ संपत्तियों की धार्मिक प्रकृति समाप्त होने का खतरा है।
- यह कदम मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता को सीमित करता है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ
विपक्ष की चुप्पी पर सवाल
AIMPLB ने इस मुद्दे पर कई तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों की चुप्पी को लेकर भी चिंता जताई है। बोर्ड के मुताबिक, इन दलों की निष्क्रियता ने उनके ‘धर्मनिरपेक्ष’ मुखौटे को बेनकाब कर दिया है।
भाजपा पर आरोप
बोर्ड का दावा है कि भाजपा सरकार का यह कदम उसके सांप्रदायिक एजेंडे का हिस्सा है, जो अल्पसंख्यकों को हाशिए पर धकेलने की नीति के तहत उठाया गया है।
कानूनी मोर्चा
सुप्रीम कोर्ट में याचिका
AIMPLB ने घोषणा की है कि वह जल्द ही इस विधेयक को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देगा। बोर्ड का कहना है कि यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन करता है, जो सभी धर्मों को अपने धार्मिक मामलों को स्वतंत्र रूप से संचालित करने का अधिकार देता है।
कानूनी विशेषज्ञों की राय
कई विधि विशेषज्ञों का मानना है कि यह विधेयक न्यायिक समीक्षा के दौरान खारिज हो सकता है क्योंकि यह धार्मिक अल्पसंख्यकों के मूल अधिकारों के विरुद्ध है।
मुस्लिम समाज की प्रतिक्रिया
समाज में आक्रोश
विधेयक के पारित होने के बाद देशभर के मुस्लिम संगठनों और धर्मगुरुओं में व्यापक असंतोष देखा गया है। कई जगहों पर स्वत:स्फूर्त प्रदर्शन और जनसभाएँ आयोजित की गईं।
छात्र और युवा वर्ग की भागीदारी
देश के कई विश्वविद्यालयों में छात्र संगठनों ने AIMPLB के आह्वान का समर्थन करते हुए इस विधेयक के खिलाफ आवाज उठाई है।
निष्कर्ष
भविष्य की राह
AIMPLB का यह आंदोलन आने वाले समय में एक महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक विमर्श को जन्म दे सकता है। यदि विधेयक को न्यायालय में चुनौती दी जाती है, तो यह मामला धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यक अधिकारों की दिशा तय करने वाला बन सकता है।
सामूहिक एकजुटता की आवश्यकता
बोर्ड ने मुस्लिम समुदाय और सभी धर्मनिरपेक्ष नागरिकों से इस आंदोलन में भाग लेने की अपील की है, ताकि एकता के साथ संविधान और धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा की जा सके।